बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 गृह विज्ञान बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 गृह विज्ञानसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 गृह विज्ञान - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- सामुदायिक संगठन से आप क्या समझते हैं? सामुदायिक संगठन को परिभाषित करते हुए इसकी विभिन्न परिभाषाओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर -
सामुदायिक संगठन का अर्थ एवं परिभाषाएँ
सामुदायिक संगठन का अध्ययन करने और इसके अभ्यास में जुटने में सक्षम होने के लिए, एक स्पष्ट परिभाषा अथवा परिभाषाओं का समुदाय होना आवश्यक होता है। साहित्य में अनेक परिभाषाएँ उपलब्ध हैं। इन्हें विभिन्न समयों तथा भिन्न-भिन्न संदर्भों में बनाया गया है। यह सामुदायिक संगठन की प्रकृति और विशेषताओं का विश्लेषण और चर्चा का पहला प्रयास था। इस रिपोर्ट में सामुदायिक संगठन को एक समाज कार्य विधि के रूप में पहचान मिली जैसे केस कार्य और समूह कार्य। आइए, सामुदायिक संगठन की अधिक व्यापक रूप से स्वीकृत कुछ परिभाषाओं पर नजर डालें-
सामुदायिक संगठन की समझ और परिभाषाएँ
(1) लिन्डेमैन - वर्ष 1921 में प्रकाशित लिन्डेमैन की पुस्तक उस विषय पर प्रकाशित होने वाली पहली पुस्तक थी जिसे उत्तरी अमेरिका में सामुदायिक संगठन के तौर पर जाना गया। उन्होंने सामुदायिक संगठन को सामुदायिक संगठन के उन चरणों के रूप में परिभाषित किया, जिनसे समुदाय की ओर से अपने मामलों को लोकतांत्रिक तरीके से नियंत्रित करने तथा पारस्परिक मान्यता प्राप्त अन्तर सम्बन्धों के उपायों द्वारा इनके विशेषज्ञों, संगठनों, एजेंसियों तथा संख्याओं की ओर से उच्चतम सेवाएँ जुटाने का सजग प्रयास शामिल है।
(2) मरे जी रोस - 1940 के दशक के उत्तरार्ध में, सामुदायिक संगठन पर अनेक लेखन कार्य सामने आए, जिनमें से 1955 में मरे जी रोस का लेखन सम्भवतः सर्वश्रेष्ठ था। उनके लेखन का अमेरीका में सामुदायिक संगठन के अभ्यास को लोकप्रिय बनाने में उल्लेखनीय योगदान रहा। उनका मानना था सामुदायिक संगठन एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसके द्वारा समुदाय अपनी आवश्यकताओं अथवा उद्देश्यों की पहचान करता है, इन आवश्यकताओं अथवा उद्देश्यों के लिए काम करने का विश्वास अर्जित करता है और इन आवश्यकताओं और उद्देश्यों को पूरा करने के लिए संसाधन (बाहरी और अंदरूनी) साधन ढूंढ़ता है। उनके बारे में कार्यवाही करता है, और ऐसा करते हुए समुदाय में सहयोगात्मक तथा सहभागी अभिवृत्तियों तथा व्यवहारों का विस्तार व विकास करता है। इसके बाद वह सामुदायिक संगठन के तीन प्रमुख दृष्टिकोणों की पहचान करते हैं-
(i) विनिर्दिष्ट विषयवस्तु दृष्टिकोण, जिसके द्वारा कोई कार्यकर्ता अथवा संगठन किसी समस्या अथवा समस्याओं के समुच्चय को पहचानकर उनका सामना करने के लिए कोई कार्यक्रम आरम्भ करते हैं।
(ii) सामान्य दृष्टिकोण, जिसके द्वारा कोई समूह, संगठन अथवा परिषद् किसी विशिष्ट क्षेत्र में सेवाओं के समन्वित तथा सुनियोजित विकास का प्रयास करते हैं।
(iii) प्रक्रिया दृष्टिकोण, जिसमें उद्देश्य विषयवस्तु (सुविधाएँ या सेवाएँ) नहीं, बल्कि एक प्रक्रिया का प्रारम्भ तथा निर्वाह होता है जिसमें समुदाय के भीतर विद्यमान लोगों द्वारा अपनी आवश्यकताओं तथा समस्याओं को पहचानने तथा उनके बारे में कार्यवाही करना शामिल होता है। विषयवस्तु तथा प्रक्रिया से सम्बन्धित ये तीनों अवयव उनकी परिभाषा में स्थान पाते हैं।
(3) हार्पर - हार्पर (1959) के अनुसार, सामुदायिक संगठन समाज कल्याण निरन्तर अधिकाधिक संसाधनों और सामुदायिक आवश्यकताओं के बीच प्रभावी समायोजन बनाने का एक प्रयास होता है। यह परिभाषा इनसे सम्बन्धित है-
(i) आवश्यकता की खोज तथा निर्धारण।
(ii) सामुदायिक आवश्यकताओं तथा अक्षमताओं का उन्मूलन तथा रोकथाम।
(iii) संसाधनों तथा आवश्यकताओं का परिसम्बन्ध।
(iv) बदलती हुई आवश्यकताओं का बेहतर सामना करने के उद्देश्य से निरन्तर पुनः समायोजन।
इसी तरह आर्थर उन्हेंम (1958, 1970), जो सामुदायिक संगठन के अभ्यास में एक अन्य महत्वपूर्ण सहयोगकर्ता थे, ने अनुभव किया कि समाज से आमतौर से जुड़ी समाज कार्य प्रणाली सामुदायिक कार्य में वैयक्तिक बदलाव के विपरीत, कार्यप्रणाली के सामुदायिक विकास अथवा नए सामुदायिक संगठन के रूप में वैकल्पिक रूप में परिभाषित किया जा सकता है। यह किसी भौगोलिक अथवा कार्यशील क्षेत्र में समाज कल्याण की आवश्यकताओं तथा समाज कल्याण के संसाधनों के बीच समायोजन लाने और उसे बनाए रखने की प्रक्रिया है।
(4) यंगहस्बैण्ड - 1973 में यंगहस्बैण्ड ने सामुदायिक संगठन को किसी स्थानीय समुदाय के लोगों सामाजिक आवश्यकताओं की पहचान करने, उन्हें पूरा करने के सर्वाधिक तरीकों पर विचार करने और जहाँ तक उपलब्ध संसाधनों के द्वारा सम्भव हो, ऐसा करने के लिए प्रवृत्त होने के लिए सहायता प्रदान करने की दिशा में लक्षित प्रक्रिया के रूप में परिभाषित किया।
(5) पीटर बाल्डॉक - पीटर बाल्डॉक (1974) की सामुदायिक कार्य की संकल्पना रॉस तथा यंगहस्बैण्ड द्वारा दी गई सामुदायिक संगठन की परिभाषा के बहुत समीप थी। उनका मत था कि सामुदायिक कार्य लोगों द्वारा अपनी समस्याओं तथा अवसरों की पहचान करने, और इन समस्याओं तथा अवसरों का स्वयं द्वारा निर्धारित तरीकों से ही सामना करने के उद्देश्य से सामूहिक कार्यवाही करने हेतु यथार्थपरक निर्णयों पर पहुँचने के लिए व्यवहार में लाई गई गतिविधि की एक श्रेणी है। सामुदायिक कार्यकर्ता उन्हें निर्णय करने, उनकी क्षमताओं तथा स्वतंत्रता का विकास करने में उनकी मदद करने की प्रक्रिया में भी समर्थन प्रदान करता है।
(6) क्रेमर तथा स्पेक्ट - 1975 में क्रेमर व स्पेक्ट द्वारा एक अन्य परिभाषा में सामुदायिक संगठन को मध्यस्थता का एक तरीका माना गया, जिसके द्वारा एक व्यावसायिक परिवर्तनकारक किसी सामुदायिक कार्यवाही व्यवस्था जिसमें व्यक्ति, समूह संगठन शामिल होते हैं और मूल्यों की एक लोकतांत्रिक व्यवस्था के भीतर सामुदायिक समस्याओं से निपटने के उद्देश्य से नियोजित सामूहिक कार्यवाही में सहायता प्रदान करता है। उनके अनुसार इसके अलावा मध्यस्थता के इस तरीके में दो परस्पर सम्बन्धित प्रसंग शामिल हैं— (क) परस्पर जानने की प्रक्रिया, जिसमें सदस्यों की पहचान करना, उन्हें भर्ती करना और उनके साथ काम करना, तथा उनके बीच संगठनात्मक तथा परस्पर वैयक्तिक सम्बन्धों का विकास (जिससे उनके प्रयास सुगम हो) करना शामिल होता है तथा (ख) सामुदायिक विकास समस्या क्षेत्रों की पहचान करने, कारणों का विश्लेषण करने, योजनाओं का निरूपण करने, रणनीतियों का विकास करने, और प्रभावी कार्यवाही के लिए आवश्यक संसाधनों की व्यवस्था करने में निहित तकनीकी कार्य।
(7) मैकमिलन - मैकमिलन का भी सामुदायिक संगठन की संकल्पना को समझने में योगदान रहा, जिसमें एक सामान्य रूप में सामुदायिक संगठन की व्याख्या प्रयोजन तथा कार्यवाही की एकता प्राप्त करने के लिए समूहों की सहायता हेतु संकल्पित निर्दिष्ट कार्यवाही के रूप में दी। वह आगे इसके चरित्र को यह विनिर्दिष्ट करते हुए प्रतिपादित करते हैं कि जब कभी भी, या तो सामान्य या फिर विनिर्दिष्ट उद्देश्यों के लिए दो या दो से अधिक समूहों की प्रतिभाओं तथा संसाधनों के समूहीकरण को प्राप्त करने अथवा अनुरक्षित करना मुख्य उद्देश्य रहता है, तो इसका सामुदायिक संगठन संव्यवहार किया जाता है, यद्यपि अक्सर यह संव्यवहार इसके चरित्र की पहचान किए बिना किया जाता है।
सामुदायिक संगठन की समसामयिक परिभाषाएँ
सामुदायिक संगठन की समसामयिक परिभाषाएँ और अधिक समसामयिक संदर्भ में, मर्फी तथा कनिंघम (2003) ने सामुदायिक संगठन को सामुदायिक शक्ति का प्रयोग करते हुए संचालन तथा अधिवक्ता की व्यवस्थित प्रक्रिया के रूप में परिभाषित किया है। उनका मानना है कि समुदाय नियंत्रित विकास हेतु संघटन (ओ०सी०सी०डी०) का उद्देश्य एक सुदृढ़ीकृत तथा पुनर्जीवित समुदाय के निर्माण के लिए सामुदायिक संगठन संचालन तथा अधिवक्ता की शक्ति को निवेश सम्बन्धी रणनीतियों से जोड़ना है। वे सामुदायिक संगठन पर बल देते हैं चूँकि यह छोटे स्थान के समुदायों से सम्बन्धित है। इसके अतिरिक्त वे स्थान आधारित सामुदायिक संगठन को एक ऐसी प्रक्रिया, जिसमें स्थानीय लोग, अपने छोटे से कार्य क्षेत्र के नवीकरण हेतु विचार द्वारा एकजुट होकर, एक ऐसा संगठनात्मक ढाँचा जिसे वे स्वयं, नियंत्रित करें, तैयार करने की योजना बनाते हैं और इसके लिए मिलकर काम करते हैं। यह एक ऐसा व्यवसाय है जिसमें संसाधन संचालन, अधिवक्ता नियोजन तथा बातचीत पर केन्द्रित सामूहिक मानवीय प्रयास शामिल होता है। इस व्यवसाय में, संचालन में एक संगठनात्मक आधार का निर्माण व अनुरक्षण शामिल है, नियोजन में तथ्यों का एकत्रण, आंकलन तथा रणनीतिक व युक्तियुक्त सोच शामिल है और बातचीत का आशय लक्ष्यों को प्राप्त करने हेतु पर्याप्त संसाधनों के लिए निरन्तर दबाव डालने और सौदेबाजी करने से है।
इस व्याख्या के अनुसार, सामुदायिक संगठन परिवर्तन के प्रयास के रूप में दो भागों पर कार्य करता है, पहला सहमत कार्यक्रम लक्ष्यों का अनुसरण करने का मार्ग है और दूसरा एक संगठनात्मक आधार का निर्माण, अनुरक्षण वह निरन्तर नवीकरण करने का मार्ग है। इस प्रक्रिया का अन्तिम लक्ष्य सुदृढ़ीकृत तथा पुनर्जीवित समुदायों का निर्माण करना है, जहाँ सुदृढ़ीकरण का आशय निवासियों द्वारा अपनी सामुदायिक, नागरिक तथा आर्थिक जिम्मेदारियों को पूरा करने के लिए एकजुट होने तथा शिक्षित होने के लिए की गई पहलों से है, जबकि पुनर्जीवन का तात्पर्य उस ध्यान का जीवन योग्य, लोकतांत्रिक, समानतापूर्ण तथा सहिष्णु बनाने से है, जिससे इसके वासियों को गरिमा तथा नैतिक निष्ठा के साथ जीने में सहायता मिल सके।
मैरी वील सामुदायिक संगठन स्थान पर सामुदायिक संव्यवहार के व्यापकतर शब्द-पद को लोकप्रिय बनाने में सहायक रही हैं। सामुदायिक संव्यवहार में सामुदायिक व आर्थिक विकास, सामुदायिक संगठन, सामुदायिक नियोजन तथा निरन्तर सामुदायिक परिवर्तन के माध्यम से जीवन की गुणवत्ता में सुधार सामुदायिक न्याय में विस्तार हेतु कार्य करना शामिल है। वह इसे संव्यवहारकर्ताओं तथा प्रभावित व्यक्तियों, समूहों, समुदायों और गठबंधनों के बीच एक सहयोगी प्रयास के रूप में देखती हैं। इन चार केन्द्रीय प्रक्रियाओं में थोड़ा और गहरे उतरना भी रुचिकर होगा-
(क) विकास - जिसमें नागरिकों को अपनी जीवन स्थितियों, आर्थिक स्थितियों तथा सामुदायिक, रोजगार व अवसर सम्बन्धी संरचनाओं के सम्बन्ध में अपने जीवन तथा वातावरण को परिवर्तित करने के एकीकृत तरीकों में काम करने हेतु शक्ति प्रदान करने पर ध्यान केन्द्रित किया जाता है।
(ख) संगठन - जिसमें सामुदायिक संगठन की प्रक्रियाएँ शामिल हैं जिनमें नागरिकों को सामुदायिक, आर्थिक व राजनीतिक स्थितियों को बदलने के लिए प्रक्षेपित किया जाता है। इसमें प्रतिवेश (पास-पड़ोस) का संगठन, स्थानीय नेतृत्व का विकास तथा गठबंधन का विकास करना शामिल होता है।
(ग) नियोजन - जो नागरिकों, अधिवक्ता समूहों, सार्वजनिक तथा स्वयंसेवी क्षेत्र के नियोजकों को उन कार्यक्रमों तथा सेवाओं के डिजाइन करने के लिए सामुदायिक नियोजन से सम्बन्धित है जो प्रदत्त समुदायों अथवा क्षेत्रों के लिए उपयुक्त हों। इसमें और अधिक प्रभावी सेवाओं के डिजाइन शामिल हैं और मानव सेवा व्यवस्थाओं की प्रगति भी शामिल है, तथा
(घ) प्रगति परिवर्तन - जिसमें राजनीतिक, आर्थिक तथा राजनीतिक बदलाव लाने के लिए समूहों द्वारा की गई कार्यवाहियाँ शामिल होती हैं।
वर्ष 2005 में रूबिन एवं रूबिन जैसे विद्वान तथा प्रेक्टिशनरों ने समसामायिक सामुदायिक संगठन की परिभाषा में एक अन्य आयाम जोड़ा। उनकी परिभाषा के साथ-साथ सामुदायिक संगठन के समस्त मॉडलों पर आधारित अन्य परिभाषाओं को भी पुटमैन जैसे विद्वानों तथा सामुदायिक पूँजी का अध्ययन किया है। पुटमैन ने सहयोगात्मक व्यवहार का अध्ययन किया और प्रस्तावित किया कि "एकजुट होने से लोग सामुदायिक पूँजी का निर्माण करने में सक्षम होते हैं, जो बहुधा आर्थिक पूँजी की तरह ही होती है। लोग सामुदायिक सम्बन्धों पर विश्वास कर सकते हैं और उन्हें सहायता व समर्थन के विनिमय के रूप में इस्तेमाल कर सकते हैं "।
शीघ्र ही समुदायों के साथ काम करने वालों ने पुटमैन के कार्य को अंगीकृत कर लिया और तब से सामुदायिक पूँजी सामुदायिक संगठन का केन्द्र रही है।
रूबिन एवं रूबिन ने समसामयिक सामुदायिक संगठन की अपनी परिभाषा में इस केन्द्रीय तत्व को समाविष्ट किया। उन्होंने सामुदायिक संगठन की प्रक्रिया की व्याख्या इस प्रकार दी है- यह लोगों को उन साझी समस्याओं को समझने में मदद करने की प्रक्रिया है जिसका सामना करते हैं और साथ ही उन्हें एकजुट होने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। उनके अनुसार, संगठन का निर्माण सामुदायिक सम्पर्कों तथा नेटवर्कों पर होता है जो लोगों को सामूहिक कार्रवाई के लिए ठोस सम्बन्ध बनाने के लिए एक साथ लाते हैं। इससे परिवर्तन लाने की टिकाऊ क्षमता सृजित होती है।
इसी तर्ज पर लोफर ने सामुदायिक संगठन की परिभाषा विश्वासपूर्ण सम्बन्धों, पारस्परिक समझ तथा भागीदारी की प्रक्रिया के रूप में दी है जो व्यक्तियों, समुदायों तथा संस्थाओं को एक साथ लाते हैं। यह प्रक्रिया सहकारी कार्यवाही को सक्षम बनाती है, जिससे नेटवर्कों, सामुदायिक मानदण्डों तथा सामुदायिक एजेंसी के माध्यम से अवसर तथा अथवा संसाधन उपार्जित होते हैं।
इस प्रकार, स्टेपल्स (2004) ने इस परिभाषा पर फोकस किया है, जिसमें सहभागी, प्रक्रिया तथा सफल नतीजों पर दोहरा बल तथा परिवर्तन के माध्यम के रूप में अनुशासित तथा संरचित संगठनों की स्थापना शामिल है। सामुदायिक संगठन की इस अवधारणा में समुदाय अथवा सामुदायिक विकास, जिसमें लोग सामुदायिक जीवन की गुणवत्ता में वृद्धि करने वाले सुधार, अवसर, वस्तुएँ तथा सेवाएँ सृजित करने के लिए सहकारी रणनीतियों का प्रयोग करते हैं, तथा सामुदायिक कार्यवाही - जिसमें लोग पूर्व-निर्धारित लक्ष्यों को पूरा करने के लिए निर्णयकर्ताओं को मनाते, बदल देते अथवा बल-प्रयोग करते हैं, अतएव, स्टेपल्स जैसे समसामयिक प्रैक्टिशनरों के अनुसार सर्वसम्मति को प्रोत्साहित करने वाले समुदाय निर्माण के मॉडलों तथा विवाद को बढ़ावा देने वाले सामुदायिक कार्यवाही के मॉडलों का उपयोग साथ-साथ अथवा एक-एक करके किया जा सकता है।
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- प्रश्न- सामुदायिक संगठन की विभिन्न परिभाषाओं के आधार पर तत्त्वों का वर्णन कीजिए।
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- प्रश्न- सामुदायिक संगठन की आवश्यकता क्यों है?
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- प्रश्न- सामुदायिक विकास प्रक्रिया के अन्तर्गत सामुदायिक विकास संगठन कितनी अवस्थाओं से गुजरता है?
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- प्रश्न- निगरानी और मूल्यांकन के बीच अंतर लिखिए।
- प्रश्न- मूल्यांकन के विभिन्न प्रकारों को समझाइये।